जीवन में सदैव उत्साह बना रहे, इससे बड़ी तमन्ना और क्या हो सकती है। बहुत सारी इच्छाएं और आस लेकर आदमी ठुमक चलत रामचंद्र से लेकर जाने वाले हो सके तो लौट के आना तक जिंदगी एक सफर है सुहाना गुनगुनाते हुए उडलाई,उडलाई करता रहता है।
उमंग और उत्साह की चाहत हर किसी में होती है। विशेषरूप से जब ठण्ड का मौसम आता है तब शरीर भले ही कंबल में दुबके रहने को विवश करता है मगर कामनाएँ बलवती होने लगती हैं।
जब कोई चाहत ज्यादा ही सिर उठाने लगती है,बाजार उसे देख लेता है। देख लेता है तो उसे भुना भी लेता है। व्यापारी संत नहीं होता कि वह इच्छाओं को वश में रखने के लिए उपदेश देता फिरे। जो मनुष्य परम ज्ञानी संत का अनुयायी होता है, उसी वक्त वह किसी ब्राण्ड व्यवसायी का उपभोक्ता भी होता है, दूसरों की नादान इच्छाओं से चतुर व्यवसायी की आकांक्षाएं हमेशा से पूरी होती रहीं है। इससे धंधे में उभार आता है। उत्पाद की मांग में उछाल पैदा होता है।
यही वजह होती है कि आदमी में उत्साह बने रहने की अदम्य तमन्ना, बाजार की रौनक बन जाती है। आंवलों के देशव्यापी उत्पादन से कहीं अधिक जोशवर्धक आंवला निर्मित च्यवनप्राश की बोतलें दुकानों में जगमगाने लगती हैं। अखबारों में बलवर्धक रसायनों और उमंग भरी कैप्सूलों के विज्ञापन निधन, उठावनों जैसी निजी सूचनाओं के स्पेस पर अपना कब्जा जमा लेते हैं।
कुछ परम्परा प्रेमी लोग बाजार पर भरोसा नहीं करते। ये बाजार विरोधी लोग जोश वर्धन के लिए अपने उपाय खुद करते हैं। उन्हें अपने उत्पाद पर विश्वास होता है। वे घर पर ही शक्तिवर्धक लड्डू बनाते हैं। आत्मनिर्भरता की मृग मरीचिका के बीच मैथी दाना से लेकर उडद की दाल, खोपरा गोला से लेकर धावड़े के गोंद, बाबाजी के देसी घी से लेकर बादाम की गिरी तक के बाजार भाव पर ये निर्भर होते हैं।
आजकल प्रतिदिन तड़के उठकर मैथी दाने के लड्डुओं का सेवन कर रहा हूँ। पिताजी भी यही करते थे। कुछ लोग उड़द, मूंग आदि के लड्डू भी खाते हैं. अपनी अपनी मर्जी, अपना अपना जायका. . ठण्ड के दिनों में पौष्टिक लड्डुओं का नियमित सेवन अच्छा माना गया है। बुजुर्ग कह गए हैं,शीतकाल का खाया पिया काम आता है। सेहत तो बनती ही है, तन-मन भी जोश और उत्साह से भर जाता है।
ये लड्डू तन को पुष्ट करें न करें मगर मन को जरूर उमंग उत्साह से भर देते हैं। दिमाग को भी तेज बना देते हैं। खाने वाला यदि लेखक हुआ तो लड्डू प्रताप से खूब दिमाग लड़ाता है और पाठक का दिमाग खराब करने लगता है।
- ब्रजेश कानूनगो